एक मां की अरदास
इक अरदास करूं तुमसे प्रभू !
मैं रो लूंगी भाग्य को अपने,
हर दुःख को चुप्पी से सह लुंगी।
बना देना मुझे निर्भया की मां,
दिल को अपने समझा लुंगी।
मगर न बनाना मुझे,
बलात्कारी की जननी,
मैं खुद को आग लगा लुंगी।
इक अरदास करूं तुमसे प्रभू !
मैं रो लूंगी भाग्य को अपने,
हर दुःख को चुप्पी से सह लुंगी।
बना देना मुझे निर्भया की मां,
दिल को अपने समझा लुंगी।
मगर न बनाना मुझे,
बलात्कारी की जननी,
मैं खुद को आग लगा लुंगी।
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आपने बहुत सुन्दर लिखा है प्रतिमा जी आपकी भावनाओं का सम्मान करती हूं कि एक बलात्कारी कि मां कभी नहीं बनना चाहेंगी ,किंतु भगवान से प्रार्थना है कि कोई भी औरत निर्भया की मां भी ना बने कभी भी नहीं । पूरी कोशिश रहेगी कि और निर्भया नहीं ना ही निर्भया की मां बने कोई ….OH MY GOD, PLEASE NO MORE NIRBHAYA.
बहुत बहुत आभार गीता मैम सुंदर समीक्षा के लिए
आपकी बात से मैं बिल्कुल सहमत हूं ,
बहुत ही बुरा लगता है जब जब ऐसी संवेदनशील एवं क्रुर घटनाएं
हमारे देश में घटित होती है ,हृदय भर आता है
Nice
Thank you
बहुत सुंदर विचार है आपका
धन्यवाद सर
Sabdon k moti kaafi aakarshak hai
Thank you
मार्मिक
धन्यवाद सर
अति मार्मिक। निशब्द
हार्दिक धन्यवाद
बहुत ही उम्दा रचना
मार्मिक भाव
सादर आभार
Nice lines
Thank you
बहोत ही सुंदर कविता लिखी है आपने यह.👍
Thank you
Very nice
Thank you
अत्यन्त मार्मिक
Thank you Suman ji