कहने को शर्मिंदा हैं
माँ भारती, अब भी चुप क्यों, फिर बिटिया हुई शिकार
दुष्कर्म, असह्य पीङ, कत्ल, कर दिया अंतिम संस्कार ।
अपमान हर महिला का, हर पिता हुआ शर्मसार
अनवरत् चलता है, थमता नहीं, होता बारम्बार ।।
भूल बैठे इंसानियत, जीभ काट, रीढ़ दी तोङ
करते रहें हैवानियत, दे गये अनगिनत चोट
अब और नहीं, जिन्दगी जीने लायक रही नहीं,
मौत के रथ पर सवार, वो गयी मानवता से हार।।
बिटिया कहने को शर्मिन्दा है, छिपा इन्हीं में दरिन्दा है
हर वह परिवार, हमारा यह मानव समाज- अपराधी है
पनाह पाता इन्हीं से , वह विक्षिप्त मानसिक रोगी है
इनकी दुष्मानसिकता का, मासुम बेटियां भुक्तभोगी हैं
अपने बीच इन्हें चिन्हित , करना होगा हमें ही बारम्बार ।।
Nice
धन्यवाद् रीतिकाजी।
बहुत ही मार्मिक तथा यथार्थपरक
ऐसी घटनाएं देखकर हृदय रो उठता है
कितना बेरहम हो गया है समाज
सादर आभार
बहुत ही जबरदस्त और मार्मिक अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद
हृदय स्पर्शी रचना बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद
सुंदर
सादर आभार
nice
सादर आभार