कश्मीरियों की कहानी धारा की जुबानी
मैं संविधान की धारा हूँ, निकली पीछे के दरवाजे से थी l
रोक ना पाया मुझे कोई, मेरे से विका था कोई l
अहंकार से चूर घर आया,कश्मीरियों पर अपना धौंस जमाया l
इतने में ना हुआ संतोष, हिंद के दुश्मनों से हाथ मिलाया l
स्वयं को ताकतवर बनाया, कश्मीरियों पर हंटर चलाया l
पंडितों पर जुल्मों सितम था ढाया , रातों-रात घर से भगाया l
बहू बेटियों को उठाया था , अपना हक उस पर जताया l
हिंद के दुश्मनों को ला बसाया , तब जाकर हुर्रियत बनाया l
पड़ोसियों से आतंकवाद बढ़वाया, मैंने ही बमबारी करवाया l
पत्थरबाज बनवाया कश्मीरियों के भविष्य को ताक में रखवाया l
जवानों का खून बहाया, जवानों का गर्दन तक कटवाया l
किसी की छांव छीना, तो किसी को विधवा बनाया l
कश्मीरी बच्चों को भड़काया,हाथों में बंदूक और पत्थर दिलाया l
मैंने ही कारगिल युद्ध करवाया, पी-ओके भी मैंने बनवाया l
जब आवाज उठाया, सत्ता लोभी लोकतंत्र का नारा लगाया l
मैंने भी खूब फायदा उठाया, जुल्मों सितम और बढ़ाया l
मैंने शीशे का महल बनाया, अपनों को विदेश भिजवाया l
जो भी कोष आया अपनों में बंटवाया, वर्षों तक मजा किया l
समय अपनी मुट्ठी में था, अकस्मात समय हाथ से निकल चला l
दरवाजे से फेंका गया, लोकतंत्र, मानवाधिकार का गुहार लगाया l
फिर भी कुछ हाथ न आया, क्योंकि बुराई का जो अंत था आया l
हिन्द ने कश्मीर में तिरंगा लहराया, चारों तरफ खुशहाली छाया l
Rajiv Mahali
बहुत खूब
धन्यवाद
Thank you
कश्मीरी पंडितों का दर्द बयां करती सुंदर प्रस्तुति
Thank you
सुन्दर
Thank u