कालचक्र

देखन कि जब उठी लालसा
देखा आँखे मीदं
कालचक्र पर बिछा के पलका
सोया था गोविंद

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“घर” मन की बातें साझा करने, आज कलम फिर चहक उठी। कागज़ ले जब लिखने बैठी, घर की यादें फिर महक उठीं। हर चोट बड़ी…

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