कितनी दूर
कितनी दूर चलना है
इसकी फ़िक्र कौन करता है
बस मंज़िलें सही मिल जाएँ
ज़माना भी ज़िक्र उसकी करता है
जो लक्ष्य भेदकर अपना
सफलता के परचम लहराता है
वो कहाँ खटकता है फिर किसी को
ऊँचा उठ जाता है नज़रों में
लाख नाकारा कहा हो लोगों ने
आखिर फिर कामयाब कहलाता है
©अनीता शर्मा
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