ख्वाइशें उसकी
ज़िन्दगी कभी अज़ीब सी भंवर उठाती है चहुँ और पानी तो नज़र आता है न जाने नाव क्यों न चल पाती है झकझोरती हैं ख्वाइशें दिल में दबी उसके पंख फड़फड़ाते तो है पर वो उड़ान नहीं भर पाती है बीज बोती है कामयाबी के परचम लहराने को पर ये क्या फसल हरी होते ही चिड़िया खेत चुग जाती है पहनती है सुहाग किसी और के नाम का कुत्सित रूढ़ियों बेड़ियों में तब वो जकड जाती है डरती भी है लड़ती भी कभी बहुत झल्लाती है अंत में खुद को ही सम... »