Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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पता नहीं किस बात पर इतराता है आदमी कब समझेगा अर्थ ढाई आखर का आदमी भूल बैठा है आज वो निज कर्तव्य को खून क्यों…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
मैं हु एक शराबी शराब जानता हू
मैं हु एक शराबी शराब जानता हू कुछ नहीं सिवा इसके नाम जानता हू उतर जाती है ये सीनै में सुकून देने कुछ नहीं में…
इंसान और मै
इंसान और मै मन्दिर , मस्जिद नहीं देखता हूं उस में बेठा भगवान देखता हूं हिन्दू, मुस्लिम नहीं देखताहू इंसान में इंसान देखता हूं हैरान…
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सत्य का पालन करना श्रेयकर है। घमंडी होना, गुस्सा करना, दूसरे को नीचा दिखाना , ईर्ष्या करना आदि को निंदनीय माना गया है। जबकि चापलूसी…
आदमी आज परेशान इतना क्यों है,
लुटा सा देखता अरमान क्यों है,
_________ परेशानी में इंसान की मनः स्थिति का यथार्थ वर्णन प्रस्तुत करती हुई कवि सतीश जी की, अति उत्तम रचना लाजवाब अभिव्यक्ति
आदमी आज परेशान इतना क्यों है,
लुटा सा देखता अरमान क्यों है,
खुद के घर में बना मेहमान क्यों है,
इंसान है तो फिर बना हैवान क्यों है।
धड़कता दिल बना बेजान क्यों है,
जानता है सभी कुछ फिर बना अंजान क्यों है।
बहुत साधारण भाषा में बड़ी बात कही है आपने
सच तो यही है कि हर इंसान परेशान है
जीवन की कठिनाइयों से जूझते व्यक्ति पर सुंदर रचना
बहुत ही सुंदर कविता
अतिसुंदर भाव
Reality is light