Categories: शेर-ओ-शायरी
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जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
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कितनी दफ़ा उँगलियाँ अपनी जला दी तूने
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वाह वाह, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति प्रज्ञा जी, वाह
धन्यवाद
बहुत सुंदर पंक्तियां
Thanks
Nice