ख्वाब मत बुन बावरी…………!

रिश्ते के स्वेटर के

प्यार की सलाई से

ख्वाब मत बुन बावरी!

शुरु में बड़ी आसान लगेगी

लेकिन दिल तक आते-आते

कभी टूटेगी ऊन

पडऩे लगेंगी गांठे

टकरायेंगी सलाईयां

कभी गलत होंगे फंदे

समझ नहीं पाओगी

कहां पर गलत हुई?

खींचतान कर गले तक पहुंचोगी

तो कई सलाई और आ जायेंगी

सारे फंदे खींच जायेंगे

सलाईयां आपस में टकरायेंगी

तुम बेबस होकर देखोगी

कि इसी बीच

कोई जाता हुआ लम्हा

रिश्ते के स्वेटर की ऊन का

एक सिरा खींच कर ले जायेगा

और ख्वाबों की बुनाई

सर्र….से खुलती चली जायेगी

रह जायेगा बस

यादों का एक उलझा हुआ गुच्छा।

जिसका भी उलझा

आज तक न सुलझा।

———————सतीश कसेरा

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