गरीबी में जलते बदन

दे कर मिट्टी के खिलौने मेरे हाथ में मुझे बहकाओ न तुम,

मैं शतरंज का खिलाड़ी हूँ सुनो, मुझे सांप सीढ़ी में उलझाओ न तुम,

जानता हूँ बड़ा मुश्किल है यहाँ तेरे शहर में अपने पैर जमाना,

मगर मैं भी ज़िद्दी “राही” हूँ मुझे न भटकाओ तुम,

बेशक होंगे मजबूरियों पर टिके संबंधों के घर तुम्हारे,
मगर मजबूत है रिश्तों पर पकड़ मेरी इसे छुड़ाओ न तुम,

माना पत्थर दिल हैं लोग बड़े इस ज़माने में तोड़ना मुश्किल है,

मगर महज मोम हूँ मैं तो पिघल ही जाऊंगा, मुझे इस बेरहमी से जलाओ न तुम॥

राही (अनजाना)

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