गरीब कवि
भूखे पेट जीना सीखा मैंने
पेट भर खाने की जरुरत भी समझी नहीं |
नंगे पैर दौड़ पड़े सफर में
बस भागता रहा
ना देखा, पाँव में चप्पल है के नहीं |
बुझी मशालों को मैंने शब्दों से जाला डाला
इतनी भड़का दी आग के
सूरज के आगे,
इसकी चमक कभी धुंधली पड़ी नहीं |
धरती से चाँद तक मैंने लिख डाला
ब्रम्हांड को भी छू लेता
पर छलांग लगाने के लिए
गरीब कवि के पास दो गज ज़मीन भी नहीं.
“”””””””….राम नरेश…. “”””””””
Good
Nice
आग है
वाह बहुत सुंदर रचना
Khoob likha h
Kya khub
Very nice
वाह
Kmaal
Wah
Good