Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Related Articles
न्याय बीमार पड़ी है, कानून की आँख में पानी है
अत्याचार दिन ब दिन बढ़ रहे हैं भारत की बेटी पर। रो-रो कर चढ़ रही बिचारी एक-एक करके वेदी पर ।। भिलाई से लेकर दिल्ली…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
एक सावन ऐसा भी (कहानी)
किसी ने कहा है कि प्रेम की कोई जात नहीं होती, कोई मजहब नहीं होता ।मगर हर किसी की समझ में कहां आती है…
जो आत्मनिर्भर है
1 जो आत्मनिर्भर है, उन्हें आत्मसम्मान की शिक्षा दे रही हैं क्यूँ हमारी सरकार? मजदुर अपने बलबूते पर ही जिन्दगी जीते, ये जाने ले हमारी…
गुनहगार हो गया
सच बोलकर जहाँ में गुनहगार हो गया, लोगों से दूर आज मैं लाचार हो गया। जो चापलूस थे सिपेसालार बन गए, मोहताज़ इक अनाज़ से…
बहुत सुन्दर रचना की है सर
अतिसुंदर
ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान दिलवाती हुई कवि सतीश जी की बेहतरीन रचना ।”ये गड्ढे समस्याओं के अड्डे हो गए हैं।” रोजमर्रा जीवन में काम आने वाली सड़क ही ठीक ना होगी तो बीमार लोग और गर्भवती स्त्रियों को कितनी परेशानी हो सकती है।ये कवि ने अपनी कविता के माध्यम से बताया है ।अति सुन्दर भाव एवम् सुन्दर प्रस्तुति।
यथार्थ पर आधारित बहुत ही सुन्दर रचना है सर
बहुत खूब