गीत- क्या चाहते हो |

गीत- क्या चाहते हो |
दूर जो जाऊ पास बुलाते हो |
पास जो आउ नजरे चुराते हो |
सच बताओ तुम क्या चाहते हो |
मालूम है तुमको तुमसे प्यार है कितना |
सागर की गहराइयों से गहरा है उतना |
उतर आंखो दिल चले जाते हो |
सच बताओ तुम क्या चाहते हो |
मुझे देख तेरा यूं मुसकुराना है गजब |
पास आकर तेरा यूं गुंगुनाना है अजब |
नजरे मिला फिर नजरे चुराते हो |
सच बताओ तुम क्या चाहते हो |
बुलाऊँ तुम्हें तुम पास आते नही हो |
पास आकर तुम कुछ सुनाते नही हो |
मुझे देखकर क्यो तुम शर्माते हो |
सच बताओ तुम क्या चाहते हो |
बीते नहीं दो दिन मिलने तड़प जाना |
आए नही मिलने मुझपर भड़क जाना |
मिलने जो आउ छुप क्यो जाते हो |
सच बताओ तुम क्या चाहते हो |
कभी हंसना रोना क्या हाल बना रखा है |
क्या बताऊँ तूने जीना मुहाल कर रखा है |
ख्वाबो मे मुझसे झगड़ जाते हो |
सच बताओ तुम क्या चाहते हो |

श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी
बोकारो, झारखंड,मोब- 9955509286

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Responses

  1. ”सच बताओ तुम क्या चाहते हो |”
    —— भारती जी आपकी यह कविता प्रेमाभिव्यक्ति से लद-कद है, मनोरम है। यह एक ऐसा गीत है जिसमें अर्थ ,गंभीरता एवं भावों का सम्प्रेषण इतना मनोहर एवं व भावमय है कि वह पाठक के सीधे दिल में उतर जाने में सक्षम है। यह एक प्रभावपूर्ण गीत है।

    1. हार्दिक आभार आपका पांडेय जी आपकी समीक्षा से बहुत ही प्रोत्साहित हूँ मगर मेरे गीत से बेहतर आपकी समीक्षा है |

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