जिन्दगी ठहरी रही
**ज़िन्दगी ठहरी रही और उम्र आगे चल पड़ी::गज़ल**
(मध्यम बहर पर)
उस ख्वाब की ताबीर जब शम्म-ए-फुगन में जल पड़ी,
तब ज़िन्दगी ठहरी रही और उम्र आगे चल पड़ी l
फ़िर कैफियत का ज़िक्र भी मुझको अजाबी हो गया,
हर कैफियत की बात पर सोज-ए-निहां पिघल पड़ी l
तू जब तलक पहलू में था ख्वाबों के दिल पर तख्त थे,
हिज़रत हुई तुझसे तो यादें सांस-सांस ढल पड़ी l
हर शय को मैंने मात दी दौर-ए-खुमारी के तहत,
फ़िर उम्र ठंडी हो गयी और दास्तां उबल पड़ी l
ऐ जिन्दगी ! तेरी रक़ाबी टूटकर गिरने लगी,
कश्कोल जब हिम्मत की टूटी आके औंधे बल पड़ी l
उम्रभर का ये बशर खामोशियों में था मगर,
जब सीढ़ियां खतम हुईं, इक नज़्म सी मचल पड़ी l
मैं अब भी तेरा ज़िक्र हंसकर टाल देता हूं मगर,
तेरी कहानी क्या छुपे!, जब तक मेरी गज़ल पड़ी ll
word-meanings-
ख्वाब की ताबीर=सपने की सच्चाई
शम्म-ए-फुगन=आंसूओं की आग
कैफियत=समाचार/हाल-चाल
सोज़-ए-निहां=मन में छुपी तकलीफ़
हिज़रत=जुदाई
दौर-ए-खुमारी=जवानी के दिन
रक़ाबी=तश्तरी
कश्कोल=कटोरी
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
Umda
So Nice
Behtareen
बहुत सुंदर,