ढह गए कितने ही ईमान ऐ मकाँ एक बोतल की चाहत में

ढह गए कितने ही ईमान ऐ मकाँ एक बोतल की चाहत में,
मगर बोतल ने बिक कर भी अपना ज़मीर नहीं छोड़ा।।
– राही (अंजाना)

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