तेरी खता

कविता – तेरी खता
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तेरी खता फिर से तुझे,
बदनाम कर सकती|
तेरे लफ्जों के कारण ही,
तुझे शैतान कह सकती|

कहां अगर तू ये सच्चाई,
तुझे बदनाम करते हैं|
करें सबसे शिकायत जो ,
तुझे ओ ,इंसान कहते हैं|

करना ना भलाई तू ,
नहीं तू भी ये रोएगा|
मिला शब्दों में गाली जो|
कहीं तू भी ये पाएगा|

तेरे रिश्ते की कीमत को,
ओ अपने भाव में समझे|
तुझे गद्दार कहके ओ,
खुद को ठीक ही समझे|

करें खुद ही गलती जो,
तुझे अज्ञान ही समझे|
अपनी ही चालो जस,
सभी का चाल ओ समझे|

दूषित है हवा सारी,
उसे तेरी ही आशा है|
भटका है मुसाफिर ओ,
उसे तेरी जरूरत है|

मेरे मालिक मेरे ईश्वर,
तुझे ओ याद करता है|
संभालो आज उसको तुम,
नहीं बर्बाद होता है|

——–✍ ऋषि कुमार “प्रभाकर”——-

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Responses

  1. तेरे रिश्ते की कीमत को,
    वो अपने भाव में समझे|
    तुझे गद्दार कहके वो
    खुद को ठीक ही समझे|
    दूषित है हवा सारी,
    उस पर छाई निराशा है
    भटका है मुसाफिर वह
    उसे तेरी ही आशा है।
    थोड़ा टाइपिंग मिस्टेक है, अन्यथा भाव अतिसुन्दर हैं।

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