|| दहेजी दानव ||
बेटा अपना अफसर है..
दफ्तर में बैठा करता है..
जी बंगला गाड़ी सबकुछ है..
पैसे भी ऐठा करता है..
पर क्या है दरअसल ऐसा है..
पैसे भी खूब लगाए हैं..
हाँ जी.. अच्छा कॉलेज सहित..
कोचिंग भी खूब कराए हैं..
प्लस थोड़ा एक्स्ट्रा खर्चा है..
हम पूरा बिल ले आए हैं..
टोटल करना तो भाग्यवान..
देखो तो कितना बनता है..
जी लगभग पच्चीस होता है..
बाकी तो माँ की ममता है..
जी एक अकेला लड़का है..
उसका कुछ एक्स्ट्रा जोड़ूँ क्या..
बोलो ना कितना और गिरूँ..
सब मर्यादाएँ तोड़ूँ क्या..
हाँ.. हाँ सबकुछ जोड़ो उसमें..
जितना कुछ वार दिया हमने..
उसका भी चार्ज लगाओ तुम..
जो प्यार दुलार दिया हमने..
संकोच जरा क्यों करती हो..
भई ठोस बनाओ बिल थोड़ा..
बेटा भी तो जाने उसपर..
कितना उपकार किया हमने..
तो लगभग तीस हुआ लीजै..
थोड़ा डिस्काउंट लगाते हैं..
बेटी भी आपकी अच्छी है..
उन्तीस में बात बनाते हैं..
वधुपक्ष व्यथित सोचने लगा..
सन्दूकें तक खोजने लगा..
जो-जो मिलता है सब दे दो..
लड़की का ब्याह रचाना है..
गर रिश्ता हाथ से जाता है..
कल फिर ऐसा ही आना है..
था दारुण दृश्य बड़ा साहब..
आँखों में न अश्रु समाते थे..
जेवर, लहंगा, लंगोट बेच..
पाई-पाई को जमाते थे..
यह देख वधु के अंदर की..
फिर बेटी जागृत होती है..
वह पास बुलाकर के माँ को..
कुछ बातें उस्से कहती है..
है गर समाज की रीत यही..
तो रत्ती भर न विचार करो..
अब मुझपर दांव लगाकर तुम..
यह पैसों का व्यापार करो..
फिर देखो कैसे मैं अपनी..
माया का जाल चलाती हूँ..
दो चार महीने फिर इनको..
मैं यही दृश्य दिखलाती हूँ..
बेटा न बाप को पूछेगा..
माँ कहने पर भी सोचेगा..
देदो जितना भी सोना है..
सबकुछ मेरा ही होना है..
बस दहेज़ का दानव यूँ ही..
अपना काम बनाता है..
रिश्तों की नींव नहीं पड़ती..
यह पहले आग लगाता है..
रिश्ते रुपयों की नीवों पर..
मत रखो खोखली होती है..
कुट जाती जिसमें मानवता..
यह वही ओखली होती है..
बेटे को शिक्षित करो मगर..
विद्वान बनाना मत भूलो..
भिक्षा, भिक्षा ही होती है..
कहकर दहेज़ तुम मत फूलो..
कि इस दहेज़ के दानव का..
अब जमकर तुम संहार करो..
उद्धार करो.. उद्धार करो..
मानवता का उद्धार करो..
-सोनित
bahut khoob ji
thank you sridhar.
lajabaab …
thanx Atul
ओह्ह गजब बहुत खूब…
thank u Ashwini
बहुत बढ़िया
Good
Nice