दिल मांगे मोर..
एक पति थे,
थोड़े बोर टाइप
और पत्नी थी उनकी,
दिल मांगे मोर टाइप
कोरोना काल में,
ना कामवाली आती
ना सहेलियों से मिल पाती,
पति से पूछती रहती बेचारी,
कैसी लगती है,बताओ तो आपको ये नारी
पति कभी कुछ बोल देते,
कभी चुपचाप ही निहारते रहते
एक दिन क्या हुआ….
रसोई में गई,चाकू उठाया
कलाई की नस पे लगाया,
और बोली…………..
तारीफ़ करते हो, या काट दूं …
*****✍️गीता
प्यारी सी धमकी
रजिस्टर्ड प्यार
दिल मांगे मोर ,पर
इमोशनल अत्याचार =अतिसुंदर ठहाका
आपका ठहाका ही मेरी समीक्षा हुई भाई जी ।🙏Thank you very much .
बहुत सुन्दर हास्य रचना। श्रृंगारमयी चुहलबाजियों का बहुत ही सुंदर चित्रण। कथात्मक शैली में कवि गीता जी ने बेहतरीन हास्य कविता का सृजन किया है।
रसोई में गई,चाकू उठाया
कलाई की नस पे लगाया,
और बोली…………..
तारीफ़ करते हो, या काट दूं …
हा हा हा, क्या प्रस्तुति है,
बहुत सारा धन्यवाद सतीश जी आपकी यही हंसी आज की बेहतरीन समीक्षा है ।”हास्य कविता”, …ये लिखे बिना ही आपको हंसी आई बहुत अच्छा लगा ।सुंदर समीक्षा के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ..
नारी शक्ति जिंदाबाद😀😀✍👌
बहुत बहुत धन्यवाद ऋषि जी ।नारी शक्ति के जिंदाबाद के लिए अतिरिक्त आभार ।
हा हा हा, बहुत खूब
आज तो आपकी हंसी ही मेरी समीक्षा है कमला जी बहुत बहुत धन्यवाद
आप ऐसे ही हंसती रहें ।
हा हा हा, कमाल है
मेरी कविता पर आपकी हंसी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद पीयूष जी 🙏
बेहद खूबसूरती वाली हास्य रचना
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा