दुनिया एक रंगमंच

दुनिया रुपी रंगमंच पे
नाटक निश-दिन होता है।
कभी प्यार है,
कभी पछाड़ है।
नाचे गाए कोई
कोई हँसता रोता है।।
नाटक के इस पृष्टभूमि पर
सकल जीव अभिनेता है।
कोई बना किसान यहाँ पर
कोई सेवक और कोई नेता है।।
कोई टमाटर ऊपजाए
बीच सड़क कोई खाए 🍅
ऐसा भी कोई खोता है।।
दर्शक और निर्देशक का
ध्यान भला जो रखता है।
वही सफल खिलाड़ी है
वही मधुर फल चखता है।।
‘विनयचंद ‘इस नाट्यजगत में
नित पटपरिवर्तन होता है।।

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