दूध का जला

जो जैसा दिखता है,
वो वैसा होता नहीं है।
दूध का जला बगैर फुंके,
छाछ भी पीता नहीं है।।

लोग चेहरे पर चेहरा लगाए होते हैं,
सूरत से सीरत का पता चलता नहीं है।
मुंह में राम बगल में छुरा छिपाए होते हैं,
अब तो अपनों पर भी यकीं होता नहीं है।।

देवेश साखरे ‘देव’

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