दोस्त

शर्मा शुक्ला मिश्रा यादव वर्मा वैश्य बनर्जी दोस्त।
खतरनाक है सबमें लेकिन असल शक्ल में फर्जी दोस्त।।

जिस थाली में करता भोजन उसी थाल को देता छेद।
अपने घड़ियाली स्वभाव का नहीं तनिक भी उसको खेद।
अक्सर मुँह की ही खाता है जब करता मनमर्जी दोस्त।।

रुके कमाई जब ऊपर की लगे बेचने खुद्दारी।
पाँव पकड़कर दरबारों से बस माँगे पहरेदारी।
हथियाने की जुगत भिड़ाये और लगाये अर्जी दोस्त।।

दिखे जरूरतमंद कहीं तो कन्नी वहीं काटता है।
माल मलाई के लालच में तलबे कहीं चाटता है।
तनकर होता खड़ा सभा में दिखता है खुदगर्जी दोस्त।।

पैनी नज़र गिद्ध से ज्यादा लेता ढूंढ मीन में मेख।
औरों की अचकन के भीतर छिपे दाग भी लेता देख।
खुद का गिरेबान सी लेता बहुत कुशल है दर्जी दोस्त।।

संजय नारायण

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close