नई सहर

रौशनी की किरण आई नजर,
कभी तो आएगी नई सहर ।

कभी तो गम का अंधेरा हटेगा,
कभी तो आएगी खुशियों की लहर ।
स्याह रात का पर्दा,
कभी तो हटाएगी नई सहर ।

कभी तो दुःखों का बादल छटेगा,
कभी तो आएगी सुनहरी पहर ।
मेरी उम्मीदों का सूरज,
कभी तो लाएगी नई सहर ।

कभी तो दुःखों का जख्म मिटेगा,
कभी तो खत्म होगी ये कहर ।
मेरे दुखते रग में खुशियाँ,
कभी तो फैलाएगी नई सहर ।

कभी तो दुःखों का बांध टुटेगा,
अभी तो जिंदगी थोड़ी और ठहर ।
मेरे उजड़े चमन में गुल,
कभी तो खिलाएगी नई सहर ।

देवेश साखरे ‘देव’

सहर- सुबह

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