नया साल

पल महीने दिन यूँ गुजरे,
कितने सुबह और साँझ के पहरे ,
कितनी रातें उन्नीदीं सी,
चाँदनी रात की ध्वलित किरणें,
कितने सपने बिखरे-बिखरे,
सिमटी-सिमटी धुँधली यादें,
कुछ कर जाती हैं आघाते ,
कभी सहला ,कर जातीं मीठी बातें,
हौले-हौले साल यूँ गुजरा,
जाते-जाते रूला गया,
नये साल की नयी सुबह से,
दामन अपना छुड़ा गया,
कितने सपने दिखा गया ।

नये साल की नयी सुबह के ,
दहलीज पर आ गए हम,
अनगिनत उम्मिदें बाँध खड़े हम,
कितने सपने इन आँखो के,
धुँधले कुछ है रंग भरे,
उम्मीदों की दरिया में ,
सब,बहने को आतुर बड़े ,
मन बाँवरा गोते खाता,
डूबता और फिर उतराता ।

चलो ठीक है बहने दो,
पल, महीने,दिन में डलने दो,
किस्मत किसकी कब खुल जाए,
मेहनत तो करने दो,
आशाओं की दरिया में ,
जीवन को बहने दो ।

चलो काल के गर्त में सीपियाँ ढूंढे,
कब कोई अनमोल मोती हाथ लग जाये ,
बहते-बहते क्या पता कोई नया तट मिल जाए,
चलो नये साल के पल, महीने,दिन में ढलते हैं,
सुबह-साँझ के पहरे से हम कब डरते हैं,
चलो आशाओं की दरिया में ,जीवन संग बहते हैं ।।

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