नवसंवत्सर को नज़राना

फाल्गुन की ब्यार में,
कोयल की थी कूक

गिरते हुए पत्तों की सरसराहट
उर में उठाती थी हूक॥

जीवंत हो उठी झंझाएँ
मानो कुछ कहती थीं

रह-रहकर आती चिड़ियों की चहचहाहट
निज क्रंदन का राग सुनाती थीं।

बलखाती-लहराती वृक्षों की डाली,
मानो मुझे बुलाती थीं।

सन्नाटे उस उजली धूप के,
स्पष्ट सुनाई देते थे

झिलमिलाती किरणें आ पत्तों के बीच से,
प्रकाशमय वर्णों को कर जाती थीं,

त्वरित-घटित निज गाथाओं
याद मुझे दिलाती थीं

मानव-उर के निजी क्रंदन का,
दुर्लभ अनुभव मुझे कराती थीं॥

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

“मानव”

मानव ^^^^^^ अहंकार का पुतला बन जा तज दे भली-भला, अरे क्या करता है मानव होकर सत्य की राह चला | तू मानव रहकर क्या…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close