….न बुझाओ तूम पहेलियाँ
सुना है हमने अपने वतन पे,
अपने वतन की कहानियाँ।
तिलक पटेल आज़ाद छोड़ गए थे,
अपनी कई निशानियांँ।।
खेले – पले हुए थे, अनेक वीर जवां,
थी यही धरती माँ की मेहरबानियाँ ।
कर्ज चुकाने की जब आई घड़ी,
कहे थे भगत – “न बुझाओ तुम पहेलियाँ”।।
आज़ादी बन गई उनके लिए , आन बान और शान,
तभी तो कर दिए वीर, वतन के नाम जिंदगानियाँ।
सन १९४७ में, जब लहराया तिरंगा आज़ादी का,
तब धरती माँ ने ली थी, बड़ी जोर से अंगड़ाईयाँ।।
Laajbaab!!!!
Thanks
वाह जी वाह
Thanks
Behtrin
Thanks
तुम
तिलक, पटेल
सुंदर रचना प्रस्तुत की है
शुक्रिया।
वेलकम
शुक्रिया।