पराई

दिल से अपनी मगर धकड़न से मैं पराई हूँ,
न जाने किस घड़ी में, इस घर में मैं आई हूँ,

आँखों ही आँखों में आँखों में मैं घिर आई हूँ,
सबकी अपनी मगर न जाने कैसे मैं पराई हूँ।।

राही अंजाना

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