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प्रकृति और पर्यावरण

प्रकृति और पर्यावरण

मानव आज हो रहा है, आज स्वार्थ प्रधान
प्रकृति और पर्यावरण का, नहीं है किसी को ध्यान
प्रकृति ही देती है सबको, सुरक्षा और जीवन दान
उसकी कृपा से ही, चहकता है सारा जहां
जल, वायु, सूर्य, अग्नि व भूमि है बड़े महान
जो देते हैं प्रतिदिन, सृष्टि को नया जीवन दान

बरसात आती है समय पर, भर जाती है भंडार
अन्न फल-फूल कंद, यह सब दे जाती है उपहार
नदी, सरोवर व बाग, नव जीवन के है आधार
जो मानव जाति पर , सदा करते हैं उपकार
वर्षा के बादल देख , होती है खुशी अपार
सबको देती तृप्ति , नित वर्षा अपरम्पार

भारत में ऋतु चक्र से ही, रहती हैं हर आस
कृषि पर ही निर्भर है, सबका आर्थिक विकास
जीवन को रोज सजाते हैं, धरती और आकाश
इससे ही रहा है , सबका उनसे रिश्ता खास
धरती देती है, सबको सुख-सुविधा और आवास
इससे जन-जन को है, उस पर अटूट विश्वास

नदी सरोवर मानव मन, खेत और खलिहान
प्रकृति से ही मिलता है, सदा मनमाना वरदान
प्रकृति और पर्यावरण का है, सदियों से एहसान
प्रकृति की रक्षा करें, इस कर्त्तव्य को लो तुम ठान
पेड़-पौधे लगाकर फिर से, महकाएं सारा हिंदुस्तान
“प्रकृति और पर्यावरण” , ही है सच में भगवान।

रचयिता- प्रकाश कुमार खोवाल (अध्यापक) जिला-सीकर (राजस्थान)

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