प्रदूषण और ज़िन्दगी
प्रदूषण बढ़ रहा है,
ज़िन्दगी हो रही है
धुआं-धुआं सी,
सांसों में घुटन है,
अशुद्ध सी पवन है
ज़िन्दगी हो गई है
धुआं-धुआं सी,
ना साफ-साफ कुछ,
देता है दिखाई
ना साफ-साफ सी सांसें
ही आईं
ये कैसी घुटन है,
धुआं-धुआं सी,
दूर से लगता है
धुंध सी छाई
कुछ देता नहीं दिखाई,
ज़िन्दगी हो रही है,
धुआं-धुआं सी..
*****✍️गीता
सही कह रही हैं आप, बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद सर
यथार्थ
सादर धन्यवाद भाई जी
सही कहती हो आप
प्रदूषण बहुत बढ़ रहा है
यदि रोंकने के प्रयास
नहीं किये गये तो
समस्या आ खड़ी होगी
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा । बहुत ही बढ़ रहा है प्रदूषण