फूल तुम्हारा शुक्रिया
मेरे गतिशील पैरों को
आखिर तुमने रोक लिया
फूल तुम्हारा शुक्रिया
नतमस्तक हूँ
तुम्हारे निश्छल स्वभाव के सामने
थकी उबी आँखो के तारा हो तुम
हिरण की तरह उछलने वाले मन को
ठहरे हुए जल की तरह स्थिर कर दिया
जान कर खुशी हुई कि तुम जलते
नहीं हो
तुम्हारी अहंकार शून्यता तुम्हें सर्वाधिक सुंदर बनाती है
तुमने इंसानियत को जिंदा किया
तुम्हारे स्पर्श से
भगवान् भाते हैं
प्रदूषण के जमाने में सुगंध दिया
फूल तुम्हारा शुक्रिया
बहुत ही सुंदर शब्दों के माध्यम से आपने फूल की महिमा को व्यक्त किया है सचमुच बहुत ही सुंदर कविता है जितनी तारीफ की जाए कम है..
ऐतिहासिक रचना
अतिसुंदर भाव
उम्दा लेखन
बहुत सुंदर प्रस्तुति