मजबूर हुए मजदूर……..

सपनो की दुनिया आँखों में लिए चले थे दूर,
पता नहीं था हो जायेंगे वो इतने मजबूर |

षडयंत्रो की चालो में जो बुरे फंसे मजदूर,
कहाँ पता था हो जायेगा वक़्त भी इतना क्रूर ||

टूट रहा हैं पत्थर दिल पर महामारी की आहत में,
शहर चले थे हालातों के परिवर्तन की चाहत में||

बंद पड़े हैं दफ्तर सारे नहीं जेब में पूंजी हैं,
खाली दिल की उम्मीदें ही सबसे वाजिब कुंजी हैं ||

खैर चल रही रेल किसी प्यासे को लगती पानी हैं,
पर पानी में साफ दिख रहा सियासी मनमानी हैं ||

कभी रेल मंजिल से पहले खुदा द्वार तक जाती हैं,
भूखो को गंतव्य बताकर वही छोड़कर आती हैं ||

कभी भटकती रेलगाड़ियाँ कहाँ कहाँ चल जाती हैं,
पांच दिनों के बाद वो वापस अपने मंजिल आती हैं

नम हैं आँखें लोगों की इन हालातों की सिड़की से,
धैर्यवान अपनों की राहें झाँक रहे हैं खिड़की से||

–रितिक यादव

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close