मदिरा

नासमझ हैं वो लोग जो तुझे शराब और पीने वाले को शराबी कहकर बदनाम करते हैं |
तू तो वो अमृत है जिसे हलक से नीचे उतार कर इंसान बड़े से बड़ा गम भी भुला दे |

ऐ मदिरा ! आज फिर से मौसम ने करवट ली है, एक बार फिर तेरी सौतन बाहर जमकर बरस रही है |
और मेरी हालत तो देख, गोपीयों से घिरे कृष्ण की तरह हुई है ठीक से उसे देख भी नहीं सकता |

उसे निहारता हूं तो तू गले को चुभने लगती है और तुझे हलक में उतारु तो वो जमकर बरसने लगती है |
मेरी वफा का कुछ तो लिहाज़ कर पगली मुझसे तेरी दूरी अब बर्दाश्त नहीं हो पाती |

माशूका अपने प्रेमी को दगा देकर किसी और की बाहों में हो सकती है इसमें कोई संदेह नहीं |
पर तू एक बार जिसके हलक से नीचे उतर जाए तो मजाल क्या उसकी जो किसी और का हो जाए |

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