मन का रूख सदा रहता इन्द्रियों के तृप्ति में ।

मन का रूख सदा रहता इन्द्रियों के तृप्ति में ।
पर जो नर मन को सात्विक रूख दे दे ।
वही कहलाते जग में वीर्यवान, ज्ञानवान है ।
ऐसे ही नर जग में युगपुरूष कहलाते है।
जो अपनी शक्ति को एक सही दिशा देते है ।।1।।

भोगी, लोभी, कामी पुरूष होते मन के अधीन है ।
इसलिए वो करते चोरी, डकैती और बहुत घिनौने कर्म है ।
उसके लिए नहीं कोई धर्म, संप्रदाय, नैतिक उसूल है ।
वो सदा चलते रहते है कुराहों पे, उनकी जिन्दगी यूँही लूट जाती है ।
जैसे कि मानव तन पाकर कोई योगी ने ईश्वर को नहीं पहचाना है ।।2।।

मन चंचल है या शान्त , ये बात हर नर जानता है ।
लेकिन मन के मालिक होता योगी, भोगी होता मन के गुलाम है ।
ग्लानि प्रकृति की देन, हर नर को इसकी अनुभूति होती है ।
लेकिन भोगी इस देन को समझकर भूलता जाता है ।
पर भोगी प्रकृति के देन को स्वीकृति से गले लगाता है,
और परमानंद में खो जाता है ।।3।।
कवि विकास कुमार

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