मसरूफ़
यह सब बहाने ही हैं कि वक़्त नहीं।
इतना भी मसरूफ़ कमबख़्त नहीं।
मिला करो कभी कभार,
जो हमसे करते हैं प्यार।
इतना भी दिल को करो सख्त नहीं।
यह सब बहाने ही हैं कि वक़्त नहीं।
मिलो कभी बगैर तलब,
कभी यूँ ही बिना मतलब।
मतलब से मिलने की जरूरत नहीं।
यह सब बहाने ही हैं कि वक़्त नहीं।
क्या पता कल हों ना हों,
दिल में कोई मलाल ना हो।
प्रेम ज़रूरी, संबंध ज़रूरी रक्त नहीं।
यह सब बहाने ही हैं कि वक़्त नहीं।
मिलने से कम होती खाई,
रिश्तों को मिलती गहराई।
दूरियाँ कम होने में दिक्कत नहीं।
यह सब बहाने ही हैं कि वक़्त नहीं।
मिलो तो मिलता सुकून,
रिश्तों को मिलता यकीन।
अपनों से बड़ा कीमती वक़्त नहीं।
यह सब बहाने ही हैं कि वक़्त नहीं।
देवेश साखरे ‘देव’
यथार्थवाद
अति, सुन्दर
शुक्रिया
वाह
शुक्रिया
Bahut khub
शुक्रिया
Nice
Thanks
वेलकम जी
Khub
शुक्रिया
Nice
Thanks
Sahi kha
धन्यवाद