मित्रता में राम हो मित्रता में श्याम हो
मित्रता में राम हो
मित्रता में श्याम हो
बस अंगुली पकड़ के चलने दो
दिल में अपने रहने दो,
सत्य वचन, सत्य के प्रेमी,
ना बड़बोला,
हक है इतना
सब कुछ कहना,
स्व हित परहित,
सब कुछ कहना,
डांट प्यार से,
मां भाई बनकर ,
कान पकड़कर ,
गाल पर थप्पड़ देना,
गुरु का डंडा
मां के मुख से निकली वचन है गंगा
भाई पिता के हाथों का डंडा,
है सुधा संस्कार विजय का झंडा,
दादी तेरा डांट मिले,
बाबा के मुख से गाली,
तुम जो कहते अनुभवों से ,
हम जो करते बिन अनुभव से,
इसीलिए रूठ जाता हूं ,
फिर से मुझे आज संभालो
कच्चा घड़ा हू,
कच्चा घड़ा के जैसे टूट जाता हूं
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कवि ऋषि कुमार प्रभाकर
मित्रता में राम हो
मित्रता में श्याम हो
बस अंगुली पकड़ के चलने दो
दिल में अपने रहने दो,
सत्य वचन, सत्य के प्रेमी,
_____________ बहुत सुंदर ,मित्रता पर बहुत सुंदर पंक्तियां लिखी है ऋषि भाई । सावन में फिर से आपका स्वागत है। कविता के बहुत सुंदर शिल्प और भाव हैं।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका सुंदर समीक्षा के लिए हृदय से आभार
अति उत्तम रचना
दिल से आभार आपका
वाह क्या बात है