Categories: मुक्तक
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
बेटी पढाओ अपनी शान बढाओ
कोमल हमेशा अपने माता पिता से डाट फटकार सुना करती थी। जबकि कोमल आठवीं कक्षा के छात्रा थी। पढ़ने लिखने में अपनी क्लास में अव्वल…
हाथ की रेखाएं न बदनाम कर डालो
हाथ की रेखाएं न बदनाम कर डालो कुछ नज़र अपने करम पर भी डालो तेरा वज़ूद खड़ा एक गुनहगार सा क्या हर्ज़ खुद को कातिल…
जीवन का सच्चा आनन्द
पिता-पुत्र सैर को, निकल पड़े खेतों की ओर ठंडी-ठंडी पवन चल रही चलते पानी का था शोर कोयल कूक रही पेड़ों पर, और कहीं नाचते…
अतिसुंदर भाव
लाजवाब अभिव्यक्ति
बहुत खूब