मेरा गांव

चाहता हूं,
वो बहार मेरी हो,
वो गुनगुनी सी धूप और टहनियौं की छांव मेरी हो,
दरिया पर धूप की चमक और कुएं की नीर की ठंडक मेरी हो,
खाली खाली राहें और गलियां की शाम मेरी हो,
कहीं दूर गुमनाम हूं शहरों में ,चाहता हूं,
तेरे बुलावे का हर वो पैग़ाम मेरा हो ।

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