मेरी कविता प्यारी मुझको ….!

मेरी कविता प्यारी मुझको…….!

मेरी कविता प्यारी मुझको,

औरों को ये सरदर्द है,

समझ के भी आदत ना छूटे,

जाने कैसा ये मर्ज है…….!

फिर भी अर्ज है…!

मेरी कविता प्यारी मुझको, औरों को ये सरदर्द है…..!

कभी जो लब पर ये आ जाती,

और कुछ पंक्ति मै लिख पाता,

फिर जो कोई पास हो मेरे,

पकड़ सुनाने उसको लगता,

मचले मेरा दिल तब ऐसे,

जैसे मेरा यही फर्ज है,

मेरी कविता प्यारी मुझको,औरों को ये सरदर्द है,

समझ के भी आदत ना छूटे, जाने कैसा ये मर्ज है…….!

जाने कविता या हो विन्मुख,

इससे न कुछ फर्क है पड़ता

दोस्त भी भागें दूर हैं मुझसे,

जब चढ़ता ये जोश कवि का

बात यही बीवी बच्चों की

इससे न कुछ उन्हें अर्थ है

मेरी कविता प्यारी मुझको, औरों को ये सरदर्द है,

समझ के भी आदत ना छूटे, जाने कैसा ये मर्ज है…….!

माँ जैसे अपने बच्चोंसे प्यार है करती,

जैसे भी हों.

मेरा प्यार भी ऐसा ही है,

मेरी कविता जैसी भी हो.

पर लोगों को इसका क्या है,

उनको तो ये समय व्यर्थ है.

सुना रहा पर मैं कवितायें, जैसे मैंने लिया कर्ज है…..!

मेरी कविता प्यारी मुझको, औरों को ये सरदर्द है,

समझ के भी आदत ना छूटे, जाने कैसा ये मर्ज है…….!

 

  “ विश्व  नन्द

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