मैं जानता नहीं हूँ

मैं जानता नहीं हूँ, तु कौन है तु मेरा ?
किसी राह पे मिली मंजिल है या तुम कोई किनारा ।
मगर दिल इतना मेरा अब टूटा किसी पे एख्तियार रहा ना मेरा ।
ये सदियों से किसी राह पे भटका मन है,
ये माने कैसे कोई मेरा भी आज हमसफर है ?
मैं जानता नहीं हूँ, तु कौन है तु मेरा ।।1।।

जग में भीड़ बहुत है, पर तन्हा सब नर है ।
प्रेमी प्रेमवियोग में रम है, दुखियाँ दुःखों से तंग है ।
सुख भी कहाँ रहती नरों के संग सबदिन है ।
आज सुख का मेला तो कल फिर दुःख यार बना है मेरा ।
मैं कैसे कह दूँ तु मंजिल है या तुम कोई किनारा ।
मैं जानता नहीं हूँ, तु कौन है तु मेरा ।।2।।

सबके संग वफा होती है कुछदिन,
फिर लोग तन्हा रह जाते है सबदिन ।
कैसे किसी राह पे मिलते नर बिछड़ते है ।
सब-के-सब एक दिन अपनी मंजिल में खो जाते है ।
किसे किसी की याद रही ये बात वक्त बताता है ?
मैं जानता नहीं हूँ, तु कौन है तु मेरा ।।3।।
कवि विकास कुमार
17:43 30/06/2020

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