मैं, मैं न रहूँ !

खुशहाल रहे हर कोई कर सकें तुम्हारा बन्दन।
महक उठे घर आँगन, हे नववर्ष! तुम्हारा अभिनन्दन।।
दमक उठे जीवन जिससे
वो मैं मलयज, गंधसार बनूँ !
उपवास करे जो रब का
उस व्रती की मैं रफ़्तार बनूँ !
सिंचित हो जिससे मरूभूमि
उस सारंग की धार बनूँ !
दिव्यांगता से त्रस्ति नर के
कम्पित जिस्म की ढाल बनूँ !
मैं, मैं ना रहूँ,
हारे- निराश हुए मन की,
आश बनूँ !
बिगत वर्ष में में
जिनका अबादान मिला
कृतज्ञता ज्ञापित,
उनकी मैं शुक्रगुजार बनूँ!
मुकाम कैसा भी आये
पर मन में थकान न आये
हे ईश! हर मुश्किल में
संभलने का समाधान बनूँ!

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन

नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन आमोद !प्रमोद! विनोद !नवल !नव हर्ष! तुम्हारा अभिनंदन ! नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन !! 💐💐💐💐💐💐💐 नवसंतति के नवचेतन में फूटें अंकुर मुद…

नवविवाहिता का पति को भाव–समर्पण…….

मेरे साजन तुम्हारा अभिनन्दन ————————————– मेरा सजने को है जीवन–आँगन मेरे साजन तुम्हारा अभिनन्दन… भाव–विभोर मेरे नैनन में स्वप्न ने ली अँगड़ाई है- जो लिखी…

लॉक डाउन २.०

लॉक डाउन २.० चौदह अप्रैल दो हज़ार बीस, माननीय प्रधान मंत्री जी की स्पीच । देश के नाम संबोधन, पहुंचा हर जन तक । कई…

Responses

  1. “महक उठे घर आँगन, हे नववर्ष! तुम्हारा अभिनन्दन।।
    दमक उठे जीवन जिससे”
    बहुत सुंदर पंक्तियां , बहुत सुंदर कविता

  2. bahut suder kavita
    suman jee
    दमक उठे जीवन जिससे
    वो मैं मलयज, गंधसार बनूँ !
    उपवास करे जो रब का
    उस व्रती की मैं रफ़्तार बनूँ !
    सिंचित हो जिससे मरूभूमि
    उस सारंग की धार बनूँ !

New Report

Close