यादें
बीते सुनहरे पल
तब क्यों याद आते हैं
जब बैठो अकेले
यादों की दरिया के किनारे
यादों की एक लहर सी आती है
सुर्ख दिल की सुर्ख रेत को गीला कर देती है
दिल आज भी ढूंढता है
वही फुरसत के पल
वक्त की धारा रोक कर
लगता है अतीत में डुबकी
पर खाली हाथ आता है
हाथ खाली और आंख भरी हुई
मानो दिल आंखों के रास्ते हल्का हो रहा हो
भरी हुई आंखें और दिल हल्का सा
सीमल के फूल की तरह
फिर एक डर बैठ जाता है मन में
इस दरिया के किनारे में बैठने से
क्युकी यादों की लहरें छूती तो बस कुछ पल है
और परेशान देर तक कर जाती है
बहुत ही सुन्दर और सच्ची अभिव्यक्ति बयान करती हुई बहुत सुन्दर रचना
आभार गीता जी