“जब तुम नहीं होती”
जब तुम नहीं होती तो ये सब होता है नींद रूठ जाती है खिड़की के परदे मुंह फेर लेते हैं बिस्तर की चादर भी बूढ़ी…
जब तुम नहीं होती तो ये सब होता है नींद रूठ जाती है खिड़की के परदे मुंह फेर लेते हैं बिस्तर की चादर भी बूढ़ी…
देखो श्राद्ध आ गए स्वर्ग लोक से पितृ देख रहे अपने पुत्रों को देखो श्राद्ध आ गए हंस रहे अपनी ही परंपराओं पर सोच रहे…
क्या वो मेरा पहला प्यार था जब तुम्हारा स्पर्श इस दिल की धड़कनों को चेतक बना देता था या तुम्हारी लटों का उड़ कर बार…
जो सावन में भी न मिल पाया वो ये माह कहां से देगा इस महीने का तो नाम ही “सितम-बर” है ये रहम कहां से…
जब इस आसमां में नया तारा जन्म लेता होगा तो क्या होता होगा? क्या उसे कोई सैर कराता होगा? या अकेले ही उन्मुक्त मड़राता होगा…
ठहराव ठीक नहीं फिर वो जीवन का हो या पानी का मुझे दादाजी ने सिखाया था बूढ़े सागर ने जवां नदियों को समझाया है ठहराव…
-सत्य घटना पर आधारित काव्य- एक नन्ही मेहमान आई है मेरे घर मैना आई है जब अकेले थी तो पेड़ की डाल में रह लेती…
यह समय बड़ा बलवान है समय पर लिखना कितना आसान है पर समझ पाना मुश्किल जितना उलझो इसे समझने में उतना ही जटिल किसी के…
दुनियां कितनी बदल जाए अगर इंसानों की तरह प्रकृति में भी प्रतिस्पर्धा हो जाए घोसले की जगह चिड़ियों की भी अट्टालिकाएं बन जाए फूलों में…
तुम्हारे खूबसूरत चेहरे पे जो गुस्सा रहता है जैसे हर गुलाब की हिफाजत में कांटा रहता है जंगल में किसी कस्तूरी हिरन सी लगती होगी…
उदास बाजार में भी खुशी आ जाती है बेरंग बाजार रंगीन हो उठता है जब बाजार में बिकने राखी आ जाती है खुद न आए…
अजीब इत्तिफाक था याद है…… छत पे हमारा चोरी छिपे मिलना तुम्हारे पिताजी के आते ही बिजली का चले जाना अजीब इत्तिफाक था एक छतरी…
ये उत्तराखण्ड है हिमालय की गोद में उत्तर का एक अखंड प्रदेश पहाड़ों के बीच खड़ा एक दुखों का पहाड़ लिए कुछ आपदा का शिकार…
*यह कविता एक ऐसे व्यक्ति पर आधारित है जो की अपनी मृत्यु के पश्चात अपनी व्यथा सुना रहा है* मैं अब दुबारा जीना नहीं चाहता…
मुझे यह बताते हुए हर्ष होता है की यह कविता मेरी पहली कविता थी जो मैंने दिनांक 22-11-2010 को लिखी थी आशा करता हूं कि…
जब तुम थे मिले बहार आ गई थी जिंदगी में सुबह की पहली किरण भी हमसे मिलकर जाती थी पंछी हमें देख गाते थे झरने…
तुम्हारी बेवक्त आने की आदत एक दिन मुझे खो देगी इंतजार करते करते चला गया तो तुम रो दोगी अभी सावन है आ जाओ सितंबर…
बस इतनी सी ख्वाइश है जैसे आज मिले हो, हर बार यूं ही मुस्कुरा कर मिलोगे क्या दौलत शोहरत ज्यादा मिले ना मिले एक ही…
बीते सुनहरे पल तब क्यों याद आते हैं जब बैठो अकेले यादों की दरिया के किनारे यादों की एक लहर सी आती है सुर्ख दिल…
पलकों में अटके हैं वो उसकी याद की तरह आज फिर तन्हा हैं हम तारों से घिरे चाँद की तरह रो अगर जाएं तो यादें…
रावण अभी जिंदा है अमृत सुखा के नाभी का रावण कहाँ मर पाया है वापस अयोध्या लौटे तो फिर से जिंदा पाया है पहले लंका…
बूढ़ी थकी सी पलकों में पल रही वो उम्मीद का जग जाना उनके लिए पर्व का महापर्व बन जाना वो दिवाली में मेरा घर आना…
माँ का प्यार है बड़ा निराला मिले उसे जो किस्मत वाला माँ ममता करुणामय सागर धन्य हुआ जग तुझको पाकर वेद पुराणों की गाथा में…
जब प्यास से व्याकुल होकर धरती चिल्लाती है चट्टानें भी रो पड़ती हैं अपनी आंखों से झरना बहा देती हैं तब लगता है पत्थर भी…
धन्न्न पैसा त्यर कमाल कस्स्ये बतूं त्यर हाल जों ले जांछे वों बबाल धन्न्न पैसा त्यर कमाल जब ऊंछे तू देश बटी तू भले क्वे…
पियक्कड़ों के शहर में शरबत ढूंढ रहा हूं खारे सागरों से मीठा पानी पुकारता रहा हूं अपने हाथों से अंजुली भर के पानी पिलाती हो…
तुम नमकीन थी मैं चाय था दोनो एक प्लेट में आकर मिलते थे वहीं से हमारी गुड मॉर्निंग शुरू होती थी बगल वाली प्लेट के…
आज एक नयी धुन लगी मेरे मोबाइल को बोला आज याद आ रही है चिट्ठी अम्मा की मिलने की जिद पकड कर के निकला पडा…
तेरे एक इशारे पे जो तू चाहे मैं वो ले आता तेरे जीवन के अंधेरे मिटाने को सौ जुगनुओ से उजाला चुरा ले आता तेरे…
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