ये धुंआ धुंआ सा
ये धुंआ धुंआ सा जल रहा है क्या?
कहीं कोई हो रहा बेखबर सा क्या?
सब में प्रभु पहचान
कितना भ्रम है लोगों को
सब उसे देख जलते है
उसे आगे बढ़ते हुए देख
उसकी ही शिकायत करते हैं
इतना समय अब भी शायद
उसके पास नहीं है क्या?
ये धुंआ धुंआ सा जल रहा है क्या?
कहीं कोई हो रहा बेखबर सा क्या?
निंदकों को सदा रखें पास
बात अब झूठ ही लगती है
तारीफ की आदत सी पड़ी है
बड़ाई ही सुन बड़प्पन भूले हैं
सच के कांटे शूल से चुभे हैं
बड़ाई इक बीमारी नहीं तो क्या—
ये धुंआ धुंआ सा जल रहा है क्या?
कहीं कोई हो रहा बेखबर सा क्या?
__________ बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अति उत्तम रचना
सुंदर प्रस्तुति
बहुत ही सुंदर
बहुत खूब