उसे ही शिकायत करते देखा
जिसके सहारे जग को देखा उसे ही शिकायत करते देखा आशाओं के तार लगाकर असली नकली प्यार दिखाकर अपने इतने पास बुलाकर न समझाना समझाते…
जिसके सहारे जग को देखा उसे ही शिकायत करते देखा आशाओं के तार लगाकर असली नकली प्यार दिखाकर अपने इतने पास बुलाकर न समझाना समझाते…
सोने को नित धारण कर शीशमहल में सोने वाली सोने से कितना प्यार तुझे शिकायत मुझसे है लेकिन इज़हार प्यार का करती हो कैसा मुझसे…
एक थी प्यारी निशा कल्पना की तरह नव आकर्षण लिए सबकी ख़ुशी के लिए उम्मीद भी न थी साथ होगी कभी देर से मिली सही…
अपनी सुरक्षा खुद करो औरों के भरोसे मत रहो मदद नमक की तरह ही लो जिम्मेदारी में आलस न करो सुरक्षा कर्मी लगाकर अगर निश्चिंत…
जिन्हें कुछ न है पता किसी खाश चीज का फिर भी वो बताते हैं समझाना दिखाते हैं दया का पात्र बनते हैं या फिर गुस्सा…
अन्याय हुआ था अगर इंसाफ की दरकार थी परिवार ही गायब हुआ खौफ बदनामी की थी ऐसे भेड़ियों को तब किसने सिंघासन दिया न्याय की…
गुरुदेव तुम्हारा अभिनन्दन भारती के अमित चन्दन तुमसे है सुगन्धित शांतिवन युवा पढ़कर पाते पुनर्जीवन रचनाएं जागरण की जान बनी भारत जन का स्वाभिमान बनी…
क्या सोंचकर चुना था ये क्या कर रहें हैं भेंड़ बनके वोट मांगने वाले भेड़िये निकल रहे हैं अरबों किया इकट्ठा पर पप्पू ही पल…
माशूम ज़िंदगी के तुम्ही तो सहारे थे भोले चंचल मन को कितने प्यारे थे नयनो के दर्पण में अक्स उभरता था मुझे और खिलोने की…
प्यार की जमीं साजिश के तहत तैयार की गयी ऊर्जा से भरे भारती संतान को बीमार कर गयी एक उम्र गुजरी अपनों से सीख कर…
कहना है बहुत कुछ शब्द कम पड़ जाते अफ़सोस सदा रहता है काश पूरा कह पाते उनको कम कहना था अधिक शब्दों को गाते बात…
बिरोध के फूल खिलें हैं माशूम की निगाहों में मजे करने की चाहत दफन हुई कैदखाने में बच्चे का अधिकार दया बंद जनक के खाने…
उम्र का फासला अलग जरूरत से ज्यादा आशा सदस्यों की अपूर्व ब्यस्तता बढ़ती शिकायत का है कारण शांत मन ही कर सकता निवारण सब सभी…
ख्वाब जो देखें हैं उनका टूटना बिखरना बहन के लिए मुश्किल है भाई की शिकायत सुनना भाई कहां गलतियों से बाज कभी आते हैं जो…
पाक नाम रखने से कोई पाक नहीं बन जाता आदत बिगड़ चुकी जिसकी सुधार मुश्किल से आता नादानियां इतनी कि उन्होंने गुस्ताखियों का उन्हें अंदाजा…
एक मां ने पांच बेटों को पाला पांच बेटे मां को खिला न सके कितनी बदकिस्मत होगी वो मां जिसपे मिटी साथ निभा न सके…
ये कैसा दौर है जहाँ विश्वास का भी कारोवार है हैसियत का पता नहीं पर पहुंचने पर बनता कर्जदार है एक समय था सबसे ज्यादा…
बचपन की नादानियां नसीब में अब हैं कहां वो मस्ती थी तभी तक दोस्त थे जब संग वहां कैसे तुम्हें बताऊं मेरे यार कितनी खुशी…
कष्टों में कोई कमी न हो मेरे प्रभु पर उन्हें सहने की क्षमता भी तूं जब भी मुसीबतों से दबा मैं कभी अवाक था मुझे…
उफ़ ये बेरूखी वो तो इक झलक के प्यासे हैं किस्मत से कमज़ोर हैं मुस्कान भी न पा सके
जिंदगी इक खेल है कोई पास कोई फेल है शिकायत न रहे किसी से सभी से मेरा मेल है
Trust is an ointment for recreation of happiness.
Trust is an ointment for recreation of happiness.
उनकी तारीफ में कोई कैसे कुछ लिखे नजरों को उनसे हटना ही जब मंजूर नहीं
बुद्धू जिन्हें कहती थी दुनियां आश्चर्य है बाद में उन्हें पूजते हैं दुनियां को छोड़ भागे जंगलों में ऐसे भगोड़ों को सुनते ही नहीं अनगिनत…
है पता मुझे अब उनकी चाहतों का अहसान की सूची में इक नाम बढ़ गया है पता चला है मुझको देर से सही लेकिन अपनी…
ये भी कैसा चाहत का मादक नशा जिसमें सब ही लोग उलझे पड़े हैं। अनुभवी सीढ़ियां इतनी पास खड़ी पर कतराते उससे कितनी दूर पड़े…
जग गया हूं प्रभु फिर एक बार शुक्रिया धन्यवाद कोटि-कोटि बार हर दिवस का जब होता अवसान अंदेशा रहता होगा कि न होगा बिहान तुझ…
मां तूं है ममता का सागर करुणामयि अमृत की गागर श्रृजनता अतुल्य अपरम्पार तेरा ऋणि ये सारा संसार सुमन सी प्रफुल्लित चंचल सन्मिष्ठा सी मधुर…
मंगल मूर्ति हे हनुमान बारम्बार तुम्हें प्रणाम तुझसे संभव सारे काम कष्ट हटे मन को आराम सेवा का संचार तुम्हीं हो जग का सद्व्यवहार तुम्हीं…
तोहमत लगाने की आदत कब की छूट चुकी है मैं गुलाम ही सही मुझे सबकी आजादी की पड़ी है मुक्त होती है रुह मरकर ही…
ये धुंआ धुंआ सा जल रहा है क्या? कहीं कोई हो रहा बेखबर सा क्या? सब में प्रभु पहचान कितना भ्रम है लोगों को सब…
ऊँची तेरी शान रे बन्दे सब में प्रभु पहचान रे बन्दे कोई बड़ा न कोई छोटा हर चेहरे पे झूठा मुखौटा कहने को ही मन…
ऊँची तेरी शान रे बन्दे सब में प्रभु पहचान रे बन्दे कोई बड़ा न कोई छोटा हर चेहरे पे झूठा मुखौटा कहने को ही मन…
बचपन से ही न जाने कितने दोस्त बनाये हंसी ख़ुशी उनके संग ज़िंदगी के पल ये विताये जगह बदल जाने पर वे कितने याद आते…
हर दिन हम अच्छे होते जायेंगे बहुत लगाए बाड़ काटों के अब फूल से कोमल होते जायेंगे गलत स्पर्धा में हमें नहीं पड़ना मुरझाये चेहरे…
जिसने हमें सम्हाला कितने प्यार से पाला आज उसे सम्हालने की पड़ी है सच कैसी मुश्किल की घडी है माँ जो हमपे गर्व थी सदा…
मर्यादा की पराकाष्ठा सद्गुणों के धाम हे पुरुषोत्तम तुम्हें बारम्बार प्रणाम अवतार पूर्व मनुष्यता थी विकल ज्ञानी ध्यानी सारे संत थे विफल अत्याचार मुक्ति की…
पतियों की हालत पत्ति की तरह श्रम कर कर गिरे पत्ति की तरह कहने को ही घर का मालिक है दिन श्रमरत रहा रात चौकीदारी…
पृथ्वी ही ग्रह जहां जीवन नदी झरने पहाड़ वाले वन जल वायु मिट्टी जैसे संसाधन अत्यधिक इनका न हो दोहन पृथ्वी दिवस जैसे आयोजन सजग…
बच्चों की आदत रही खाकर भूल जाने की फल उठा बस ले चले चाहत मरी ठिकाने की किसमें गलतियां ढूंढे हम किससे अब शिकायत करें…
अपनी चाहतों के लो आज वो फिर गुलाम हो गये कैसी होती थी सुबहें अब कैसे शाम हो गये छुपते अपने ही घर जो दोस्तों…
तुझसे है नाता विश्वास न आता इक पास आता दूजा दूर जाता दूर रहकर भी कहां चैन आता शादी लड्डु जैसे खाकर है पछताता अब…
समझाना चाहते थे हम उनको क्या और वे समझे हैं देख लो जी क्या ये देख के लगता है यूं कश्मकश में चुप रहना ही…
कर्म के लिए कहां कोई करार बैठे हैं बेकार आलस की कतार बेजार की पगार सरकार की बुखार तंत्र में अरसे से सुधार की दरकार…
तलाश तेरी है मेरा पता चले ये नाम मेरा क्यूं अनजान लगे ये काम मेरा इक बोझसा लगे साथी जो बने टिक ना सके चाहा…
पाकिस्तान दूसरों की बरबादी चाहते खुद बरबाद हो गया उसके राह पर चलने वाले का यही अंजाम होता है अच्छाई फैला कर अमर हो गया…
आशा भी न थी कि मिल पायेंगे बचपन के कई साल गुजारे साथ दशकों तक सिर्फ याद बन जायेंगे मीठे ख्वाब फिर कहीं गुम जाएगें…
इतना मजबूर सा कोई हो तो कैसे आईने शक्ल बदले हर रोज जैसे शायद उम्र का नया सा पड़ाव हो या फिर बीते पल का…
धर्म आंतरिक जागृति है संवेदना का अहसास है अंतर्मन अगर साफ है मजहब हमेशा पास है शांति संदेश के लिए समूह प्रेम का एकल स्वतंत्र…
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