रसखान

पान खाने गया था वो पनवाड़ी के पास।
एक सलौना सा सूरत था नजरों के पास।।
लाल लाल होंठ थे उसके और घुंघराले बाल।
श्याम रंग और तिरछी चितवन टेढ़े मेढ़े चाल।।
कोमल कोमल पाँव मनोहर बिन जूते का देखकर।
चित्रलिखे से बने मियाजी टगे चित्र को देखकर।।
होश में आके पूछ गए ये बालक कौन कहाँ का है।
यमुना तट पर वृन्दावन है ये बालरुप जहाँ का है।।
पान रहा पनवाड़ी के पास भागा वृन्दावन की ओर।
हाथ में जूते और सलवार लेकर पहुँचें भोरे भोर।।
लीलाधर सलवार पहनकर दर्शन दिए सभी को।
विनयचंद के ठाकुर ने दास किया रसखान कवि को।।

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