राजनीतिक दोहे
पाँच साल में अब नहीं, हो हर साल चुनाव
बहती गंगा प्रेम की, होते दूर तनाव
पढ लिख कर नौकर बने, या होते बेकार
एक बार नेता बनो, दो कई पीढ़ी तार
कानो को प्यारे लगे, नेता जी के बोल
पर इनका होता नहीं, सचमुच कोई मोल
नेता जी के वेश में, आया भ्रष्टाचार
डरकर लोगों ने कहा, स्वागत है सरकार
बदल गए नेता मगर, बदल सके ना चाल
महगाई बढ़ती गयी, मुस्किल रोटी दाल
एक बार बनवाइए, हे जनता सरकार
करेंगे अपने क्षेत्र में, घोटाला बौछार
बहरे राजा सो रहे, प्रजा कर रही शोर
सुंदर सपना देखते, महल बने चहुं ओर
अति सुन्दर रचना है आपकी।
“सरकार या शासन प्रणाली को
दोष देकर कुछ नहीं होगा,
हमें ही आगे आना होगा।
अपने स्वार्थों को तज कर
समाज हित में बढ़कर
कुछ अलग कुछ नया करना होगा।”
अति सुन्दर रचना है आपकी
धन्यवाद
अति उत्तम रचना
सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुंदर
बहुत खूब