“रावण का अहंकार”

जो मनुज होते हैं धरातल पर ही रहते हैं
जो दनुज होते हैं पवन में उड़ते रहते हैं
रावण का अहंकार जब हद से बढ़ता है,
लेकर धनुष और तीर राम संहार करते हैं
यह मत समझ तू मूढ़ बुद्धी है नहीं मेरे
बहरूपियों के हर रूप से हम परिचित रहते हैं..

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. ++++++++++++++++++
    झूठ कितना भी तांडव कर ले
    सच के आगे उसे झूकना पड़ेगा ।
    क्रोध कब-तक आग बनके जलेगा
    आखिर राख बनके उसे सोचना पड़ेगा ।।
    कवि विकास कुमार

  2. बहरूपियो के हर रूप से तो हम परिचित रहते हैं
    पर ना जाने क्यों सच्चाई कहने की बारे में हम कुछ भी ना कहते हैं

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