Categories: मुक्तक
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
हम क्या-क्या भूल गये
निकले हैं हम जो प्रगति पथ पर जड़ों को अपनी भूल गये मलमल के बिस्तरों में धँस के धरा की शीतलता भूल गये छूकर चलते…
“लगता है भूल गये हो”
यूँ गयें हो दूर हम से जैसे कुछ था ही नहीं, लगता है पुरानी सोहबतों को भी तुम भूल गये हो, इतना भी आसान…
वो एक सितारा
आसमां के तारों में वो एक सितारा क्यों लगता है अपना सा। पलकें बंद कर देखूं तो सब क्यों लगता है सपना सा। बाहें किरणों…
“बिछ गये रंगीन पंखों की तरह ख्वाब मेरे,आखिरकार लहरों ने किनारा पा ही लिया…”
अपने ख़्वाब पूरे होते हुए देखने की कवि की बहुत सुन्दर पंक्तियां
उल्लास के क्षण व्यक्त करती हुई बहुत सुंदर कविता
सुंदर समीक्षा के लिये धन्यवाद
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
मेंहदी को एक दिन रंग तो लाना ही था।
सही कहा सर
धन्यवाद