लाचारी
गाँव की एक चिड़ियाँ शहर को गई।
ना जाने उसकी अस्मत कहाँ खो गई।।
बूढ़ी माँ से वो बोली
मैं बेटी नहीं हूँ लड़का तेरा।
भाई अच्छे से पढ़ना
तूहीं छोटू तूहीं है बड़का मेरा।।
इतना कहते हुए वो रो गई ।
गाँव की एक चिड़ियाँ शहर को,,,,
थक गई ,खोज कर, नौकरी हर जगह।
कुछ मिले मतलबी कुछ हुए बेअसर।।
अब तो मजबूर इस कदर हो गई।
गाँव की एक चिड़ियाँ शहर को,,,,,,
शर्म का अब तो घूंघट हटाना पड़ा।
गंदगी को भी खुद से सटाना पड़ा।।
नसीबा के आगे बेधड़क सो गई।
गाँव की एक चिड़ियाँ शहर को,,,,
कोई बरफी कहे कोई चमचम कहे।
विनयचंद अँखियों से आंसू बहे।।
संग अश्कों के जीवन लिए रो गई।
गाँव की एक चिड़ियाँ शहर को,,,,, =
बहुत सुन्दर रचना
धन्यवाद
Nice
Nice
वाह
Wah
भाव