विचार कर सको तो जरूर करना
विचार कर सको तो
जरूर कर लेना,
असुर हो या मनुज
हिसाब रख लेना।
अपने कृत्यों की
सजाकर डायरी
जा रहे वक्त के पन्नों में
आप लिख लेना।
जिन माता-पिता ने
जन्म दिया, पालन किया
उनकी सेवा का था
कर्तव्य जो,
क्या उसे आप निभा पाये हो
सच्ची संतान कहा पाये हो,
सात फेरों की सपथ खाकर तुम
जिस अर्धांगिनी को लाये हो
क्या उसे सच में जिम्मेदारी से
खूब सम्मान दिला पाये हो।
जा रहे वक्त के पन्नों में
आप लिख लेना,
अपने बच्चों प्रति सचमुच में
अपने दायित्व निभा पाये हो।
और चारों तरफ स्वयं के तुम
किसी अनाथ की
असहाय की
जरा सी भी मदद कर पाए हो।
कहीं किसी का
कभी किसी का तुम
कहीं हक तो न छीन लाये हो।
विचार कर सको तो
जरूर कर लेना,
असुर हो या मनुज
हिसाब रख लेना।
अपने कृत्यों की
सजाकर डायरी
जा रहे वक्त के पन्नों में
आप लिख लेना।
वाह बहुत खूब,
“अपने कृत्यों की सजाकर डायरी
जा रहे वक्त के पन्नों में आप लिख लेना।”
बहुत ही सुन्दर और उपयोगी सुझाव दिया है कवि सतीश जी ने अपनी कविता के माध्यम से । स्वयं का अवलोकन करने का यह उत्तम तरीका है। अति सुन्दर शिल्प और उत्कृष्ट कथ्य सहित अति उत्तम प्रस्तुति, उम्दा लेखन
बेहतरीन
अति सुन्दर रचना