विश्व पटल पर हिंदी चमके

कविता-विश्व पटल पर हिंदी चमके
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विश्व पटल पर
हिंदी चमके
ऐसा राग सुनाता हूं,
दुनिया भर के लोग सुनो
क्यों हिंदी में कविता लिखता हूं,
जब दुनिया में
कोई भगवान नहीं
हरि ने दुख हरा नारी का
असुर खींच रहा था पल्लू
हरि ने चीर बढ़ाकर-
लाज बचाई नारी का,
दुनिया में जब दर्द बढ़ा
भारत से एक धीर बढ़ा,
दुख का निवारण तब होगा
बुद्ध शरण में जाना होगा,
दुनिया जिसमें शौक रखे,
महावीर उसे इनकार करें,
नग्न ही रहकर संदेश दिया,
कामुकता उनको छू न सकी
ऐसे-ऐसे धीरे-वीर थे भारत में,
ईश्वर भी माथा टेके गुरु चरणों में,
शिष्यों में कुछ शिष्य हैं ऐसे,
गुरु प्रतिमा सम्मुख विद्या सीखें,
दुनिया जब शून्य से शून्य रही,
तब भारत ने शून्य दिया,
भारत देश निराला है
बहुभाषी कई संस्कृत वाला है,
आयुर्वेद मिलेगा
योग मिलेगा,
वैदिक ज्ञान सहित-
गुरुकुल का इतिहास मिलेगा,
चंद्रगुप्त की धरती है यह,
युद्ध छोड़ जो-
बुद्ध का उपदेश दिया
उस अशोक की धरती है यह,
सारी महिमा संस्कृत में
संस्कृत, हिंदी भाषा की जननी है,
क्यों न गाऊँ हिंदी मैं
मेरी मातृभाषा हिंदी है
सर्वत्र रहे यह हिंदी
विश्व पटल पर मेरी हिंदी हो।
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**✍️ ऋषि कुमार प्रभाकर

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Responses

  1. युवा कवि ऋषि जी, आपकी यह बहुत सुंदर रचना है। इसमें यथार्थ और आदर्श का बेहतरीन तालमेल है। मातृभाषा हिंदी के सम्बंध में बहुत सरस और सटीक पंक्तियाँ लिखी हैं आपने। बहुत खूब, लेखनी की यह निरंतरता बनी रहे। यूं ही रोज लिखें, निखरते रहें।

  2. “क्यों न गाऊँ हिंदी मैं मेरी मातृभाषा हिंदी है
    सर्वत्र रहे यह हिंदी विश्व पटल पर मेरी हिंदी हो।”
    मातृभाषा पर गर्व होना ही चाहिए ,कवि ऋषि जी ने प्राचीन भारत के भी दर्शन करवा दिए हैं अपनी कविता के माध्यम से । बहुत सुंदर पंक्तियां, उत्तम लेखन

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